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Monday, May 31, 2010

मुझसे मेरा एक और प्यार करने वाला रूठ गया|

ये तुम किस बात पर बिगड़े हो इतना,
कोइ झूठा-सा इल्जाम इस दिल पर लगा जाते हो|
तुम्हे ठ रूठ्ना, तो रूठ्ने से इक ज़रा पहले,
कुछ हम से भी सुना होता, कुछ अपनी भी सुना जाते|



उम्र बदती गई फासला बढ्ता गया, जिन्दगी क सफर इतना लम्बा नही हुआ था कि एक और प्यार करने वाला मुझे छोड कर चाला गया|

अपना गुनाह समझ भी नही पाया था कि वो इस तारह रूठ कर चले गए कि बताया हि नही कि कब् मिलेंगे|
अब तो खुद भी नही पता कि वो मिलेंगे भी या नही|

धूंड रहा था एक दिन उनको कि ना मिलेंगे याद आया कि नही मिलेंगे हमको वो अब,
लौट रहा था घर को अपने मिले वो हमको लेकिन केवल यादों मे|
सोच रहा हूँ अब मै ये कि ये कोइ मिलना था क्या|

याद आई बढे पापा (ताउ जी) कि कही हुई बात कि वक्त से पहले और मुक्कदर से ज्यादा कुछ नही मिलता|
लेकिन अब क्या बचा है--->
या तो पुराने रिश्तों के लिए आज को खो दुन या, आज को बचाकर अपना कल बचा लूं|
असलियत ये एक एस सवाल है जो मेरे जेहन को हिला देता है|

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