मै पेशे से एक छात्र हूँ | कभी कभी हिन्दी मे लेख भी लिख देता हूँ,
खुदको एक बहुत बडा आलोचक मानता हूँ,
या आप कह सकते हो श्री राम चन्द्र शुक्ल क शब्द पुत्र भी हूँ|
मगर हर लेखक कि यहि हि एक कमि होती है
कि वो अपने जीवन को सहि से नही लिख पाता है,
लेकिन अपने लेख के मध्यम से मै अपने हृदय के भीटर छिपी हुई कुच भव्नाओ को लिखने कि कोशिश कर रह हूँ|
ये कहानी मेरी बढ़ी दीदी कि मृत्यु के बारे मे है,
मेरी दीदी जिनकी मृत्यु २ अप्रैल, २०१० को हुई थी|
वो वास्तव मे मृत्यु नही हत्या थी जो मेरे प्रिये शहर बरेली के एक गंगा शील अस्पताल मे हुई थी,
ये अस्पताल कहने को तो बहुत ही अच्छा है लेकिन सहि मायने मे यहाँ पर केवल पैसा कमाया जा रह है,
इसी अस्पताल कि एक महिला चिकित्सिका अलका अग्रवाल ने मेरी बहन कि शल्य चिकित्सा कि थी और उसी दौरान उस नालायक चिकित्सिका ने मेरी बहन के पेट मे एक कुप्पी छोड दी, अगले दिन ही मेरी बहन कि मृत्यु हो गई, मेरी बहन को चिकित्सा के समय पर एक बेटी हुई थी जो अब सुरक्षित है,
किन्तु मेरी बहन कि मौत हुई है या हत्या ये कशामो-कष मुझे खाई ज रही है,
उस पाखण्डी चिकित्साका ने मेरी बहन कि मौत का कारण बताय कि उन्हे लगातार तीन हृदय के दौरे पढे थे जो कि होना नामुम्किन है, क्युकी उस चिकित्सिका ने बताया था कि उन्हे लगातार तीन दौडे साठ मिनट के भीटर ही पढे थे|
मै सोच चुक हूँ मै मुझे क्या कर्ण है, किन्तु आप लोग सावधान हो जो क्युकी अग्ली बारी आपकी भी हो सकती है|
तो अब लोग तैयार हो जो|
निशीथ,
हैदराबाद|
"मुझे कोइ सहानुभूति नही चाहिए मेरा ये लेख केवल एक चेतावनी है जो आप सभी को भी फयदे कि हो सकती है|"